व्यक्तित्व एक मनोवैज्ञानिक अवधारणा है। इसका प्रयोग लोगों द्वारा प्रायः बड़े सतही अर्थ में किया जाता है। किसी व्यक्ति के रंग-रूप, शारीरिक बनावट वेशभूषा, सौन्दर्य आदि बाह्य लक्षणों के आधार पर प्रायः उसके व्यक्तित्व के बारे में अर्थ लगा लिया जाता है। इस तरह व्यक्ति के शरीर की बाहरी दिखावट को उसका व्यक्तित्व समझ लिया जाता है। परन्तु यह अर्थ न तो पूर्ण और न उपयुक्त । व्यक्तित्व के स्वरूप की व्याख्या मुख्य रूप से दार्शनिकों, समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों ने की है। व्यक्तित्व की भारतीय और व्यक्तित्व की भारतीय और पाश्चात्य अवधारणाओं में भी काफी अन्तर है।
विश्व के अनेक धर्मों, मतों के साथ-साथ साहित्य, कला और संस्कृति में व्यक्तित्व सम्बन्धी अवधारणाएँ पाई जाती हैं। परन्तु व्यक्तित्व जैसे जटिल संप्रत्यय को पूर्णरूपेण समझना सम्भव नहीं है।
में व्यक्तित्व' शब्द का विशेष और महत्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य ही बालक के व्यक्तित्व का संतुलित विकास करना है। न केवल विद्यार्थी, वरन् शिक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी व्यक्तियों के व्यक्तित्व का उनकी कार्य प्रणाली और कार्य क्षमता एवं कार्य सफलता पर असर पड़ता है। विद्यार्थियों, अध्यापकों तथा प्रशासकों के व्यक्तित्व का एकीकृत ढंग से विकसित होने शिक्षा के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता मिलती है। यही कारण है कि शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में व्यक्तित्व के अध्ययन आवश्यक बल व ध्यान दिया गया है। व्यक्तित्व के संप्रत्यय, विकास और व्यक्तित्व पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में बहुत-से मनोवैज्ञानिकों ने अध्ययन किया तथा विभिन्न प्रकार से व्यक्तित्व को स्पष्ट करने का प्रयास किया, व्यक्तित्व मापन की अनेकों विधियाँ विकसित
शिक्षा जगत्
व्यक्तित्व का अर्थ (MEANING OF PERSONALITY)
साधारण बोलचाल में व्यक्तित्व शब्द किसी ऐसे विशेष गुण की ओर संकेत करता है, जिसे सभी लोग विभिन्न परिस्थितियों में व्यवहार करने तथा पारस्परिक सम्बन्धों की दृष्टि से विशेष महत्व
देते हैं।
व्यक्तित्व अंग्रेजी के 'परसनलिटी' (Personality) शब्द का हिन्दी पर्याय है जिसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा के परसोना' (Persona) शब्द से हुई है। 'Persona' का अर्थ है 'मुखौटा', जिसे पहनकर यूनानी लोग लोकमंचों पर अभिनय करते थे। मुखौटा लगाने का तात्पर्य यह होता है कि दूसरे लोग वास्तविक व्यक्ति को न देखकर उसे मुखौटा वाले रूप में जानें । धीरे-धीरे ‘परसोना' शब्द का अर्थ बदलता गया तथा चौदहवीं शताब्दी में यह 'Personality' के रूप में परिवर्तित हो गया। इस व्युत्पत्तिपरक अर्थ के अनुसार व्यक्तित्व का अर्थ बाह्य वेशभूषा है जिसे धारण कर अभिनेता अपने विशिष्ट व्यवहार को व्यक्त करता है।
सम्पूर्ण व्यक्तित्व के परिचय के लिए इसमें व्यक्ति के संगठित व्यवहार का मिश्रण आवश्यक है। आगे प्रस्तुत की गई परिभाषाएँ यह स्पष्ट करती हैं कि व्यक्तित्व एक व्यक्ति के समस्त मानसिक एवं शारीरिक गुणों का एक ऐसा गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उस व्यक्ति का समायोजन निर्धारित करता है। व्यक्तित्व के सम्बन्ध में कहा जा सकता है कि1. व्यक्तित्व विशिष्ट होता है। प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व दूसरे से भिन्न होता है। प्रत्येक
व्यक्ति अपने ढंग से समायोजन करता है, इस तरह हर एक व्यक्तित्व अपने आप में विशिष्ट होता है। व्यक्तित्व की दूसरी विशेषता उसकी ‘आत्म-चेतना' (Self conciousness) है। जब व्यक्ति में 'आत्मचेतना' जाग्रत होती है, तभी उसका व्यक्तित्व अस्तित्व में आता है। एच. आर. भाटिया के अनुसार—“हम कुत्ते को व्यक्तित्व से विभूषित नहीं करते और यहाँ तक कि एक छोटे बच्चे में भी, आत्मचेतना या व्यक्तिगत परिचय का भाव उदय न होने पर व्यक्तित्व जैसी वस्तु नहीं होती। "We do not attribute personality to a dog and even a child cannot be described as a personality because it has only a vague sense of personal identity."
-H. R. Bhatia
व्यक्तित्व में व्यवहार के तीनों पक्ष (ज्ञानात्मक, क्रियात्मक एवं भावात्मक) सम्मिलित होते हैं। इसका क्षेत्र केवल चेतन अवस्था में किए गए व्यवहार तक ही सीमित नहीं रहता है,
अपितु. अर्द्धचेतन व अवचेतन व्यवहार तक फैला हुआ है। 4. व्यक्तित्व कुछ दैहिक व्यवस्थाओं (Psychophysical Systems) अथवा व्यवहार सम्बन्धी
विशेषताओं और क्रियाकलापों का एक संयुक्त संगठन है। व्यक्ति के व्यक्तित्व को उसके जैविक और सामाजिक अथवा वंशानुक्रम और वातावरण सम्बन्धी पक्षों से अलग करके व्याख्यायित नहीं किया जा सकता है।
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